बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
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अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
इसे सामान-ए-सफ़र जान ये जुगनू रख ले
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
शजर हैं अब समर-आसार मेरे
चमकते लफ़्ज़ सितारों से छीन लाए हैं
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
मोहब्बतों के सफ़र पर निकल के देखूँगा
कभी दिमाग़ कभी दिल कभी नज़र में रहो