दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
Parveen Shakir
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Mir Taqi Mir
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Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
शजर हैं अब समर-आसार मेरे
बैठे बैठे कोई ख़याल आया
इसे सामान-ए-सफ़र जान ये जुगनू रख ले
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
चराग़ों का घराना चल रहा है
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
ज़िंदगी की हर कहानी बे-असर हो जाएगी