मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
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रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
तुम्हारे नाम पर मैं ने हर आफ़त सर पे रक्खी थी
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
दोस्ती जब किसी से की जाए
मुझे डुबो के बहुत शर्मसार रहती है
शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
इसे सामान-ए-सफ़र जान ये जुगनू रख ले
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं