रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1478) Peoples Rate This
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
दोस्ती जब किसी से की जाए
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की
यूँ सदा देते हुए तेरे ख़याल आते हैं
काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं
मोहब्बतों के सफ़र पर निकल के देखूँगा
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते