ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2662) Peoples Rate This
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
चमकते लफ़्ज़ सितारों से छीन लाए हैं
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
सब को रुस्वा बारी बारी किया करो
काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
उठी निगाह तो अपने ही रू-ब-रू हम थे
मुझे डुबो के बहुत शर्मसार रहती है
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
शजर हैं अब समर-आसार मेरे