Ghazals of Rajinder Manchanda, Bani

Ghazals of Rajinder Manchanda, Bani
नामराजेन्द्र मनचंदा बानी
अंग्रेज़ी नामRajinder Manchanda, Bani
जन्म की तारीख1932
मौत की तिथि1981
जन्म स्थानDelhi

ज़रा सा इम्कान किस क़दर था

ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए

ये ज़रा सा कुछ और एक-दम बे-हिसाब सा कुछ

वो जिसे अब तक समझता था मैं पत्थर, सामने था

वो बात बात पे जी भर के बोलने वाला

तुझे ज़रा दुख और सिसकने वाला मैं

तीरगी बला की है मैं कोई सदा लगाऊँ

तमाम रास्ता फूलों भरा है मेरे लिए

सियाह-ख़ाना-ए-उम्मीद-ए-राएगाँ से निकल

शोला इधर उधर कभी साया यहीं कहीं

शफ़क़ शजर मौसमों के ज़ेवर नए नए से

सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए

सर-ब-सर एक चमकती हुई तलवार था मैं

सैर-ए-शब-ए-ला-मकाँ और मैं

सफ़र है मिरा अपने डर की तरफ़

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ

सदा-ए-दिल इबादत की तरह थी

रही न यारो आख़िर सकत हवाओं में

क़दम ज़मीं पे न थे राह हम बदलते क्या

पी चुके थे ज़हर-ए-ग़म ख़स्ता-जाँ पड़े थे हम चैन था

फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी

पैहम मौज-ए-इमकानी में

न मंज़िलें थीं न कुछ दिल में था न सर में था

न जाने कल हों कहाँ साथ अब हवा के हैं

न हरीफ़ाना मिरे सामने आ मैं क्या हूँ

मुझ से इक इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था

मुझे पता था कि ये हादसा भी होना था

मोड़ था कैसा तुझे था खोने वाला मैं

मिरे बदन में पिघलता हुआ सा कुछ तो है

मेहराब न क़िंदील न असरार न तमसील

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