ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था
क़ाइल ही तिरी बात का अंदर से नहीं था
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ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए
हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं
हमें लपकती हवा पर सवार ले आई
'नून-मीम-राशिद' के इंतिक़ाल पर
दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या
न हरीफ़ाना मिरे सामने आ मैं क्या हूँ
तीरगी बला की है मैं कोई सदा लगाऊँ
चमकती आँख में सहरा दिखाई साफ़ देता है
मिरे वास्ते जाने क्या लाएगी
पैहम मौज-ए-इमकानी में
औरत कुत्ता और पड़ोस
इधर की आवाज़ इस तरफ़ है