दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
मैं कि अक्स-ए-मुंतशिर एक एक मंज़र में अकेला
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(489) Peoples Rate This
इधर की आवाज़ इस तरफ़ है
मेहराब न क़िंदील न असरार न तमसील
माज़ी से उभरीं वो ज़िंदा तस्वीरें
देखता था मैं पलट कर हर आन
लिबास उस का अलामत की तरह था
इक गुल-ए-तर भी शरर से निकला
फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी
ये ज़रा सा कुछ और एक-दम बे-हिसाब सा कुछ
वो एक अक्स कि पल भर नज़र में ठहरा था
मुझ से इक इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था
जीना है मुझे