उदास शाम की यादों भरी सुलगती हवा
हमें फिर आज पुराने दयार ले आई
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मुझ से इक इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था
ढलेगी शाम जहाँ कुछ नज़र न आएगा
मिरे बदन में पिघलता हुआ सा कुछ तो है
बैन करती हुई सम्तों से न डरना 'बानी'
हमें लपकती हवा पर सवार ले आई
न मंज़िलें थीं न कुछ दिल में था न सर में था
मिरे वास्ते जाने क्या लाएगी
शामिल हूँ क़ाफ़िले में मगर सर में धुँद है
अजीब तजरबा था भीड़ से गुज़रने का
मुझे पता था कि ये हादसा भी होना था
कोई भी घर में समझता न था मिरे दुख सुख
ग़ाएब हर मंज़र मेरा