आँखों प अभी तोहमत-ए-बीनाई कहाँ है

आँखों प अभी तोहमत-ए-बीनाई कहाँ है

तू ख़ुद ही तमाशा है तमाशाई कहाँ है

आईना हुई तिश्नगी पायाबी-ए-जाँ से

चेहरे प तो लिक्खी हुइ रुस्वाई कहाँ है

इन जागती आँखों को मिले धूप के बाज़ार

ऐ दिल वो पिघलती हुइ तंहाई कहाँ है

सुरज है कि बस नोक पे सूई की खड़ा है

अब फ़ुर्सत-ए-कम-कम भी मिरे भाई कहाँ है

ख़ूँ चूसते लम्हों से कहो हाथ पसारें

एहसास की सूरत अभी ज़रदाई कहाँ है

कुछ और बिखर कर कहीं पहचान न खो लूँ

इस शहर को मिटी मिरी रास आई कहाँ है

वो शख़्स बड़े चाव से कुछ पूछ रहा है

तू ऐसे में ऐ लज़्ज़त-ए-गोयाई कहाँ है

ख़ैर अपनों में इक हम ही नकुल आए हैं शाएर

शहज़ादगी-ए-शौक़ ये आबाई कहाँ है

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In Hindi By Famous Poet Rauf Khair. is written by Rauf Khair. Complete Poem in Hindi by Rauf Khair. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.