कुछ लोग समझने ही को तयार नहीं थे

कुछ लोग समझने ही को तयार नहीं थे

हम वर्ना कोई उक़्दा-ए-दुश्वार नहीं थे

सद-हैफ़ कि देखा है तुझे धूप से बे-कल

अफ़्सोस कि हम साया-ए-दीवार नहीं थे

हम इतने परेशाँ थे कि हाल-ए-दिल-ए-सोज़ाँ

उन को भी सुनाया कि जो ग़म-ख़्वार नहीं थे

सच ये है कि इक उम्र गुज़ारी सर-ए-मक़्तल

हम कौन से लम्हे में सर-ए-दार नहीं थे

माना कि बहुत तेज़ थी रफ़्तार-ए-हवादिस

हम भी कोई गिरती हुई दीवार नहीं थे

ये उस की इनायत है कि अपना के तुम्हें 'शौक़'

वो ज़ख़्म दिए जिन के सज़ा-वार नहीं थे

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In Hindi By Famous Poet Razi Akhtar Shauq. is written by Razi Akhtar Shauq. Complete Poem in Hindi by Razi Akhtar Shauq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.