Rubaai Poetry (page 1)
ज़ुल्मत का तिलिस्म तोड़ कर लाया हूँ
परवेज़ शाहिदी
ज़ुल्फ़ों से फ़ज़ाओं में अदाहट का समाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़ुहहाद का ग़फ़लत से है औराद-ओ-सुजूद
ग़ुलाम मौला क़लक़
ज़ोरों पे है रोज़ ना-तवानी मेरी
मीर मेहदी मजरूह
ज़िंदा है अगर यार तो सोहबत बाक़ी
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ज़ोलीदा मुअम्मा है जहान-ए-पुर-पेच
ग़ुलाम मौला क़लक़
ज़ंजीर से होने का नहीं दिल भारी
यगाना चंगेज़ी
ज़ालिम दम-ए-नज़अ न आया अफ़सोस
आसी उल्दनी
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
अल्लामा इक़बाल
ज़ाहिर वही उल्फ़त के असर हैं अब तक
मीर अनीस
ज़ाहिर में क़ज़ा बहुत सितम ढाती है
तिलोकचंद महरूम
ज़ाहिर में अगरचे यार ग़म-ख़्वार नहीं
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ज़ाहिर है रुबाई में मिरी दम क्या है
सादिक़ैन
ज़ाहिर भी तू है और निहाँ भी तू है
मीर हसन
यूसुफ़ को उस अंजुमन में क्या ढूँढता है
यगाना चंगेज़ी
यूँ कौन सी चीज़ है जो दुनिया में नहीं
सूफ़ी तबस्सुम
यूँ इश्क़ की आँच खा के रंग और खिले
फ़िराक़ गोरखपुरी
ये वहम-ए-दुई दिल से जुदा करना था
ग़ुलाम मौला क़लक़
ये वहम किसी तरह न माक़ूल हुआ
शाद अज़ीमाबादी
ये शोला-ए-हुस्न जैसे बजता हो सितार
फ़िराक़ गोरखपुरी
ये शौक़-ए-शराब-ओ-जाम-ओ-मीना कैसा
सूफ़ी तबस्सुम
ये शहर बुलंद आलम-ए-बाला से था
ग़ुलाम मौला क़लक़
ये साज़-ए-तरब ये शादमानी कब तक
सूफ़ी तबस्सुम
ये संग-ए-निशाँ है मंज़िल-ए-वहदत का
अमजद हैदराबादी
ये राज़-ओ-नियाज़ और ये समाँ ख़ल्वत का
फ़िराक़ गोरखपुरी
ये रात जुदाई की बहुत रौशन है
बाक़र मेहदी
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है
इस्माइल मेरठी
ये फूल चमन को क्या सँवारें साक़ी
सूफ़ी तबस्सुम
ये मुझ से न पूछ तू ने क्या क्या देखा
अहमद हुसैन माइल
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
इस्माइल मेरठी