Rubaai Poetry (page 14)
किस तरह कहूँ आ भी कहीं उज़्र न कर
ग़ुलाम मौला क़लक़
किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
फ़िराक़ गोरखपुरी
किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
अकबर हैदराबादी
किस ख़ौफ़ का दाग़ माह-ए-वा-दीद में है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
किस दर्जा सुकूँ-नुमा हैं अबरू के हिलाल
फ़िराक़ गोरखपुरी
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
शौकत परदेसी
ख़ुर्शीद पे जिस वक़्त ज़वाल आता है
ग़ुलाम मौला क़लक़
ख़ूँ हो के टपकती है तमन्ना देखो
बाक़र मेहदी
खुलता ही नहीं हुस्न है पिन्हाँ कि अयाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
ख़ुद-साख़्ता अफ़्साने सुनाते रहिए
अलक़मा शिबली
ख़ुदी की ख़ल्वतों में गुम रहा मैं
अल्लामा इक़बाल
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
जोश मलीहाबादी
ख़ुद रफ़्ता हो बदमस्त हो कैसा है मिज़ाज
ग़ुलाम मौला क़लक़
ख़ुद अपने तरीक़े में क़लंदर मैं हूँ
सादिक़ैन
खोते हैं अगर जान तो खो लेने दे
फ़िराक़ गोरखपुरी
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
मीर अनीस
खींचे मुझे मौत ज़िंदगानी की तरफ़
मीर अनीस
ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ख़ाशाक-ए-वजूद एक भँवर में रहता
फ़रीद परबती
ख़ानों में कई ख़ुद को बट कर आया
फ़रीद परबती
ख़ामोशी पे इल्ज़ाम लगाया न करो
बाक़र मेहदी
ख़ामोशी का राज़ खोलना भी सीखो
सूफ़ी तबस्सुम
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम
इस्माइल मेरठी
ख़जलत से मरा जाता हूँ क्या ज़िंदा हूँ
साहिर देहल्वी
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार
इस्माइल मेरठी
कश्ती-ए-हयात खे सकूँगा क्यूँ-कर
परवेज़ शाहिदी
करते नहीं कुछ तो काम करना क्या आए
फ़िराक़ गोरखपुरी
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
इस्माइल मेरठी
कर लुत्फ़-ओ-मुदारा से दिल-ए-ख़ल्क़ को राम
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
कानों की ग़रज़ कलाम बतलाता है
आरज़ू लखनवी