Rubaai Poetry (page 15)
कम-ज़र्फ़ अगर दौलत-ओ-ज़र पाता है
अमजद हैदराबादी
कलकत्ता को डाक में चला हूँ जो मैं आह
मुनीर शिकोहाबादी
काला इंसान हो या कोई ज़र्द इंसान
तिलोकचंद महरूम
कल तक थी ख़ुल्द ख़ाना-ज़ाद-ए-देहली
ग़ुलाम मौला क़लक़
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
जोश मलीहाबादी
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
इस्माइल मेरठी
कहती हैं यही तेरी निगाहें ऐ दोस्त
फ़िराक़ गोरखपुरी
कहते रहें ये लोग कि अच्छा न हुआ
बाक़र मेहदी
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
कहते हैं सभी मुसदाम अल्लाह अल्लाह
इस्माइल मेरठी
कहते हैं 'रज़ा' कभी कहीं पहुँचा है
कालीदास गुप्ता रज़ा
कहते हैं कि रौनक़-ए-जमाली हूँ मैं
अहमद हुसैन माइल
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
इस्माइल मेरठी
कहते हैं ब-सद-नाज़ मिरा नाम न लो
बाक़र मेहदी
कहता हूँ ख़ुदा-लगती अक़ीदे के ख़िलाफ़
ग़ुलाम मौला क़लक़
कहने को बहुत अहल-ए-क़लम आए हैं
बाक़र मेहदी
कह दो कि मैं ख़ुश हूँ रखूँ गर आप को ख़ुश
अकबर इलाहाबादी
काफ़ूर है दिल-जलों को तनवीर-ए-सहर
सुरूर जहानाबादी
काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार
इस्माइल मेरठी
का'बे में तो सिद्क़ और सफ़ा को पाया
जोर्ज पेश शोर
कब तक में रंज-ओ-ग़म की शिद्दत देखूँ
रशीद लखनवी
कब कोई फ़ुज़ूल हाथ मिलता है भला
बयान मेरठी
कब फ़िक्र-ओ-ख़याल का असासा कम है
अकबर हैदराबादी
जुरअत हो तो दुनिया से बग़ावत कर लो
शौकत परदेसी
जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर निकल
इस्माइल मेरठी
जो साहिब-ए-मक्रमत थे और दानिश-मंद
इस्माइल मेरठी
जो रंग उड़ा वो रंग आख़िर लाया
फ़िराक़ गोरखपुरी
जो नक़्श थे पामाल बनाए मैं ने
सादिक़ैन
जो नख़्ल हो ख़ुश्क उस का फलना क्या है
मीर मेहदी मजरूह
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
मीर अनीस