Rubaai Poetry (page 16)
जो मा'नी-ए-मज़मूँ है वही उनवाँ है
अमजद हैदराबादी
जो मकतब-ए-ईजाद में दाख़िल होगा
बयान मेरठी
जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं
नरेश कुमार शाद
जो कुछ मुसीबतें हैं तुझ पर कम हैं
अमजद हैदराबादी
जो कोई कि आफ़त-ए-निहानी माँगे
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
जो जा के न आए फिर जवानी है ये शय
ग़ुलाम मौला क़लक़
जो हुस्न में आ के नाज़ बन जाता है
वहशी कानपुरी
जो हो न सका हम से वो कर जाओ तुम
अख़्तर अंसारी
जो है सो पस्त सब से आली तू है
मीर मेहदी मजरूह
जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है
मीर अनीस
जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
इस्माइल मेरठी
जो चाहिए देखना न देखा मैं ने
शाद अज़ीमाबादी
जीता हूँ, कहाँ तक मैं जीता ही मरूँ
फ़रीद परबती
जिस वक़्त का डर था वो शबाब आ पहुँचा
शाद अज़ीमाबादी
जिस तरह रगों में ख़ून-ए-सालेह हो रवाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
जिस तरह नद्दी में एक तारा लहराए
फ़िराक़ गोरखपुरी
जिस तरह कूचे में तेरे फिरते हैं हम बर-तरफ़
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन
फ़िराक़ गोरखपुरी
जिस से तेरी हुई है यकताई
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
मीर अनीस
जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
जिस दिल में ग़ुबार हो वो दिल साफ़ कहाँ
शाद अज़ीमाबादी
जिस दर्जा हो मुश्किलात की तुग़्यानी
इस्माइल मेरठी
जीने की ब-ज़ाहिर नहीं कुछ आस हमें
अख़्तर अंसारी
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
जोश मलीहाबादी
झूमी है हर इक शाख़ सबा रक़्साँ है
साहिर होशियारपुरी
जज़्बा हर इक अंदाम में ढल सकता है
बाक़र मेहदी
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
अल्लामा इक़बाल
जर्राह के सामने खोला फोड़ा
मुनीर शिकोहाबादी
जन्नत का समाँ दिखा दिया है मुझ को
अख़्तर शीरानी