Rubaai Poetry (page 18)
इश्क़ माशूक़ का है पैदाई
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
इश्क़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
'ईसा' के नफ़्स में भी ये एजाज़ नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
इस वक़्त ज़माने में बहम ऐसे हैं
ग़ुलाम मौला क़लक़
इस तरह तबीअत कभी शैदा न हुई
अख़्तर अंसारी
इस तरह बदल गई है मेरी रफ़्तार
दर्द सईदी
इस सिलसिला-ए-शुहूद को तोड़ दिया
शाद अज़ीमाबादी
इस शाम वो सर में दर्द सहना उस का
सादिक़ैन
इस से कि कहीं के शाह हो सकते हम
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
इस पार से यूँ डूब के उस पार गए
आरज़ू लखनवी
इस निय्यत से तंग आ के रोए हम लोग
सूफ़ी तबस्सुम
इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है
अमजद हैदराबादी
इस हाथ से जो कुछ मैं लिया करता हूँ
अख़्तर अंसारी
इस दर पे हर एक शादमाँ रहता है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
जोश मलीहाबादी
इस दहर में अब किस पे भरोसा कीजे
अमीर चंद बहार
इस बज़्म से मैदान में जाना होगा
ग़ुलाम मौला क़लक़
इस बज़्म में अर्बाब-ए-शुऊर आए हैं
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
इस बज़्म को जन्नत से जो ख़ुश पाते हैं
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
इस बहर में सैकड़ों ही लंगर टूटे
सुरूर जहानाबादी
इस बाग़ में किस को फूल चुनते देखा
सुरूर जहानाबादी
इस अहद में एहतिसाब-ए-ईमानी क्या
ग़ुलाम मौला क़लक़
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
इक़रार नगर को गदाई का है
अहमद हुसैन माइल
इंसान तो नक़्द-ए-जाँ भी खो देता है
फ़रहत कानपुरी
इंसाँ में रूह-ए-आदमिय्यत भी नहीं
सूफ़ी तबस्सुम
इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हारे
इस्माइल मेरठी
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
जोश मलीहाबादी
इंसान है ख़ुद इतना कसीर-उल-अतराफ़
मंज़ूर हुसैन शोर
इंक़लाब-ए-रोज़गार
अल्ताफ़ हुसैन हाली