Rubaai Poetry (page 2)
ये मरहला-हा-ए-शौक़ तौबा तौबा
सूफ़ी तबस्सुम
ये दौर है यूँ अपनी बसीरत का क़तील
मंज़ूर हुसैन शोर
ये दौर
शैदा अम्बालवी
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
जोश मलीहाबादी
ये बंदा-ए-ख़ाकसार या'नी 'नाज़िम'
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ये बात ग़लत कि दार-उल-इस्लाम है हिन्द
अकबर इलाहाबादी
ये बात अजीब निगाह में आई है
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
ये आज की दुनिया भी है मरने वाली
अख़्तर अंसारी
या-रब तुझे फ़िक्र-पा-ए-बंदी क्या है
ग़ुलाम मौला क़लक़
यारब मिरे दिल में है उजाला तेरा
अहमद हुसैन माइल
या-रब मिरे दिल को कर अता सिद्क़-ओ-सफ़ा
साहिर देहल्वी
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
इस्माइल मेरठी
याँ नफ़्स की शोख़ी से है मजनूँ लैला
ग़ुलाम मौला क़लक़
याँ हम को दिया क्या जो वहाँ पर हो निगाह
ग़ुलाम मौला क़लक़
यहाँ काल से है तरह तरह की तकलीफ़
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
शौकत परदेसी
याद आती हैं जब हमें वो पहली चाहें
नज़ीर अकबराबादी
या शाह-ए-नजफ़ थाम लो इस किश्वर को
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
या क़ल्ब को दर्द में डुबोना सीखो
सूफ़ी तबस्सुम
वो यास कि उम्मीद कि चश्मे फूटें
अख़्तर अंसारी
वो वक़्त-ए-शबाब वो ज़माना न रहा
ग़ुलाम मौला क़लक़
वो ताज है सर पर कि दबा जाता हूँ
हुरमतुल इकराम
वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए
फ़िराक़ गोरखपुरी
वो लुत्फ़ अब हिन्दू मुसलमाँ में कहाँ
अकबर इलाहाबादी
वो जिस को मोहब्बत की रविश कहते हैं
सादिक़ैन
वो हूर को चाहा कि परी को चाहा
फ़ानी बदायुनी
वो चेहरा सुता हुआ वो हुस्न-ए-बीमार
फ़िराक़ गोरखपुरी
वो चश्मा दिला कहाँ से पैदा होगा
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
वो बहर-ए-करम जो मेहरबाँ हो जाए
मुनीर शिकोहाबादी
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
जोश मलीहाबादी