Rubaai Poetry (page 3)
वक़्त की मुसाइदत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
वल्लाह ये ज़िंदगी भी है क़ाबिल-ए-दीद
यगाना चंगेज़ी
वाइज़ को मुनासिब नहीं रिंदों से तने
यगाना चंगेज़ी
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
इस्माइल मेरठी
उस ज़ुल्फ़ ने हम से ले के दिल बस्ता किया
नज़ीर अकबराबादी
उस शोख़ को हम ने जिस घड़ी जा देखा
नज़ीर अकबराबादी
उस ख़ित्ते की जा आलम-ए-बाला में नहीं
ग़ुलाम मौला क़लक़
उस हस्ती-ए-मंजली से विर्से में मिला
सादिक़ैन
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
मीर अनीस
उन की तो ये इरफ़ानी मनाज़िल में से है
सादिक़ैन
उम्मीदों का इक हार बन टूट गया
हुरमतुल इकराम
उलझे जो रक़ीब से वो कल पी के शराब
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
उल्फ़त में मरे तो ज़िंदगी मिलती है
आसी उल्दनी
उल्फ़त हो जिसे उसे वली कहते हैं
मीर अनीस
उड़ते देखा जो ताइर-ए-पर्रां को
तिलोकचंद महरूम
उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आया है
शौकत परदेसी
टूटी हुई ब़ाँबी में वो बस लेता है
क़तील शिफ़ाई
तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले
मीर तक़ी मीर
तुम तेशा-ए-बाग़बाँ से क्यूँ मुज़्तर हो
जगत मोहन लाल रवाँ
तूफ़ान नई तरह उठा देखें तो
बाक़र मेहदी
तू ने सूरत जो अपनी दिखलाई
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
तू ने ऐ इंक़लाब क्या ख़ल्क़ किया
आरज़ू लखनवी
तू कहता है ख़ालिक़-ए-शर-ओ-ख़ैर नहीं
आरज़ू लखनवी
तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है
फ़िराक़ गोरखपुरी
तू है कि एलोरा की कोई मूर्ती है
सादिक़ैन
तिफ़्ली ने बे-ख़ुदी का आग़ाज़ किया
रशीद लखनवी
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
मीर अनीस
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
मीर अनीस
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
जोश मलीहाबादी
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
इस्माइल मेरठी