Rubaai Poetry (page 32)
आँखों में ख़ुमार-ए-शौक़-अफ़ज़ा ले कर
सूफ़ी तबस्सुम
आँखों में हया उस के जब आई शब-ए-वस्ल
सना गोरखपुरी
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
फ़िराक़ गोरखपुरी
आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है
मीर अनीस
आलूदा ख़यालात में तेरे हूँ मुदाम
ग़ुलाम मौला क़लक़
आलिम ओ जाहिल में क्या फ़र्क़ है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
आलाम-ओ-मसाइब से लड़ा करते हैं
ओबैदुर् रहमान
आलाम-ओ-मसाइब में गिरफ़्तार सही
बाक़र मेहदी
आलम का वजूद है नुमूद-ए-बे-बूद
साहिर देहल्वी
आला रुत्बे में हर बशर से पाया
मीर अनीस
आख़िर को बढ़ी तो बात बढ़ती ही गई
दर्द सईदी
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
इस्माइल मेरठी
आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
शौकत परदेसी
आईना-ए-महताब लिए आए हैं
बाक़र मेहदी
आईना जो हाथ उस के ने ता-देर लिया
नज़ीर अकबराबादी
आहों से अयाँ बर्क़-फ़िशानी हो जाए
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
आग़ोश में आ कि कामरानी कर लूँ
सूफ़ी तबस्सुम
आग़ाज़ है कुछ तिरा न अंजाम तिरा
सुरूर जहानाबादी
आफ़ात-ओ-हवादिस से भरी है दुनिया
अख़्तर अंसारी
आफ़ाक़ से उस्ताद-ए-यगाना उठ्ठा
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
मीर अनीस
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
मीर अनीस
आदा को उधर हराम का माल मिला
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
आबाद उसी ने दिल की वादी की है
क़तील शिफ़ाई
आ जाए अगर हुक्म फ़लक से 'नाज़िम'
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
आ जा कि खड़ी है शाम पर्दा घेरे
फ़िराक़ गोरखपुरी
आ दिल में फ़ज़ा-ए-तूर बन कर छा जा
वहशी कानपुरी