साइल देहलवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का साइल देहलवी
नाम | साइल देहलवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Saail Dehlvi |
जन्म की तारीख | 1868 |
मौत की तिथि | 1945 |
ये मस्जिद है ये मय-ख़ाना तअ'ज्जुब इस पर आता है
तुम्हें परवा न हो मुझ को तो जिंस-ए-दिल की परवा है
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
मोहतसिब तस्बीह के दानों पे ये गिनता रहा
मालूम नहीं किस से कहानी मिरी सुन ली
खिल गई शम्अ तिरी सारी करामात-ए-जमाल
ख़त-ए-शौक़ को पढ़ के क़ासिद से बोले
झड़ी ऐसी लगा दी है मिरे अश्कों की बारिश ने
जनाब-ए-शैख़ मय-ख़ाने में बैठे हैं बरहना-सर
हमेशा ख़ून-ए-दिल रोया हूँ मैं लेकिन सलीक़े से
हैं ए'तिबार से कितने गिरे हुए देखा
गुमाँ किस पर करें सूफ़ी इधर है उस तरफ़ वाइज़
आह करता हूँ तो आते हैं पसीने उन को
ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़ ओ साज़ पर
वफ़ा का बंदा हूँ उल्फ़त का पासदार हूँ मैं
उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को
सुना भी कभी माजरा दर्द-ओ-ग़म का किसी दिल-जले की ज़बानी कहो तो
मोहब्बत में जीना नई बात है
मिले ग़ैरों से मुझ को रंज ओ ग़म यूँ भी है और यूँ भी
ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला
जताते रहते हैं ये हादसे ज़माने के
होते ही जवाँ हो गए पाबंद-ए-हिजाब और
हक़-ओ-नाहक़ जलाना हो किसी को तो जला देना
हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले
बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में
अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी