कुछ हक़ीक़त तो हुआ करती थी इंसानों में

कुछ हक़ीक़त तो हुआ करती थी इंसानों में

वो भी बाक़ी नहीं इस दौर के इंसानों में

वक़्त का सैल बहा ले गया सब कुछ वर्ना

प्यार के ढेर लगे थे मिरे गुल-दानों में

शाख़ से कटने का ग़म उन को बहुत था लेकिन

फूल मजबूर थे हँसते रहे गुल-दानों में

उन की पहचान की क़ीमत तो अदा करनी थी

जानता है कोई अपनों में न बेगानों में

सर ही हम फोड़ने जाएँ तो कहाँ जाएँगे

खोखले काँच के बुत हैं तिरे बुतख़ानों में

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In Hindi By Famous Poet Saeed Ahmad Akhtar. is written by Saeed Ahmad Akhtar. Complete Poem in Hindi by Saeed Ahmad Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.