शहर के लोग जिसे तेरी सितम-ज़ाई कहें

शहर के लोग जिसे तेरी सितम-ज़ाई कहें

हम बहर-हाल उसे अपनी पज़ीराई कहें

तेरे अहबाब हमें ग़ैर समझते ही रहे

तेरे दुश्मन हमें अब तक तिरा शैदाई कहें

ये शरफ़ भी तिरी चाहत में मिला है हम को

तेरे सब चाहने वाले हमें सौदाई कहें

हम सजाते हैं शब-ओ-रोज़ तिरे ज़िक्र के साथ

हम क़फ़स में भी वही नग़्मा-ए-सहराई कहें

लाख टूटे हैं सुरों पर तिरी उल्फ़त में पहाड़

तेरे दीवाने पहाड़ों को मगर राई कहें

तुझ को शिकवा है यहाँ आ के तुझे भूल गए

हम भला किस से क़फ़स में ग़म-ए-तंहाई कहें

हम ने चाहा तुझे ज़िंदाँ की सलाख़ों के एवज़

इसे नादानी कहें या इसे दानाई कहें

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In Hindi By Famous Poet Safdar Saleem Sial. is written by Safdar Saleem Sial. Complete Poem in Hindi by Safdar Saleem Sial. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.