साग़र सिद्दीक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का साग़र सिद्दीक़ी
नाम | साग़र सिद्दीक़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Saghar Siddiqui |
जन्म की तारीख | 1928 |
मौत की तिथि | 1974 |
जन्म स्थान | Amritsar |
ज़िंदगी और शराब की लज़्ज़त
वहशत-ए-दिल ने काँच के टुकड़े
सोने चाँदी की चमकती हुई मीज़ानों में
साक़िया एक जाम पीने से
क़ाफ़िले मंज़िल-ए-महताब की जानिब हैं रवाँ
फिर उमड आए हैं यादों के सुहाने बादल
मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को
कोई ताज़ा अलम न दिखलाए
जाम-ए-इशरत का एक घोंट नहीं
जाने वाले हमारी महफ़िल से
हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जा
हर माह लुट रही है ग़रीबों की आबरू
है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटकी हुई सलीब
एक शबनम के क़तरे की तक़दीर को
एक बहकी हुई नज़र तेरी
दुख-भरी दास्तान माज़ी की
छुप के आएगा कोई हुस्न-ए-तख़य्युल की तरह
चश्म को ए'तिबार की ज़हमत
बे-क़रारी में भी अक्सर दर्द-मंदान-ए-जुनूँ
ऐ सितारों के चाहने वालो
ऐ कि तख़्लीक़-ए-बहर-ओ-बर के ख़ुदा
आह! तेरे बग़ैर ये महताब
ज़ुल्फ़-ए-बरहम की जब से शनासा हुई
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
ये किनारों से खेलने वाले
तुम गए रौनक़-ए-बहार गई
तक़दीर के चेहरे की शिकन देख रहा हूँ
रंग उड़ने लगा है फूलों का
नग़्मों की इब्तिदा थी कभी मेरे नाम से
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं