उन से बचना कि बिछाते हैं पनाहें पहले
सब सवालों के जवाब एक से हो सकते हैं
फ़क़त ज़मीन से रिश्ते को उस्तुवार किया
क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है
जिस को तय कर न सके आदमी सहरा है वही
रात अंदर उतर के देखा है
शिकस्ता-पाई से होती हैं बस्तियाँ आबाद
एक लम्हे में ज़माना हुआ तख़्लीक़ 'मलाल'
मैं ढूँड लूँ अगर उस का कोई निशाँ देखूँ
तेरे बारे में अगर ख़ामोश हूँ मैं आज तक
तअज्जुब उन को है क्यूँ मेरी ख़ुद-कलामी पर
बराए नाम सही साएबाँ ज़रूरी है