साहिर देहल्वी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का साहिर देहल्वी
नाम | साहिर देहल्वी |
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अंग्रेज़ी नाम | Sahir Dehlavi |
जन्म की तारीख | 1863 |
मौत की तिथि | 1962 |
या-रब मिरे दिल को कर अता सिद्क़-ओ-सफ़ा
मरदूद-ए-ख़लाइक़ हूँ गुनहगार हूँ मैं
मैं नफ़्स-परस्ती से सदा ख़्वार रहा
लाज़िम मलज़ूम हो गए ज़ात-ओ-सिफ़ात
ख़जलत से मरा जाता हूँ क्या ज़िंदा हूँ
हर सर में ये सौदा है कि मैं ही मैं हूँ
ऐ तीनत अबस अब बदी से बाज़ आ
आलम का वजूद है नुमूद-ए-बे-बूद
यूँ तो हर दीन में है साहब-ए-ईमाँ होना
वा होते हैं मस्ती में ख़राबात के असरार
था अनल-हक़ लब-ए-मंसूर पे क्या आप से आप
शेर क्या है आह है या वाह है
क़ुल्ज़ुम-ए-फ़िक्र में है कश्ती-ए-ईमाँ सालिम
क़दम है ऐन हुदूस और हुदूस ऐन क़दम
पाबंदी-ए-अहकाम-ए-शरीअत है वहाँ फ़र्ज़
नक़्श-ए-क़दम हैं राह में फ़रहाद-ओ-क़ैस के
मिल-मिला के दोनों ने दिल को कर दिया बरबाद
मैं दीवाना हूँ और दैर-ओ-हरम से मुझ को वहशत है
क्या शौक़ का आलम था कि हाथों से उड़ा ख़त
किताब-ए-दर्स-ए-मजनूँ मुसहफ़-रुख़्सार-ए-लैला है
कौनैन-ए-ऐन-ए-इल्म में है जल्वा-गाह-ए-हुस्न
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
हम गदा-ए-दर-ए-मय-ख़ाना हैं ऐ पीर-ए-मुग़ाँ
है सनम-ख़ाना मिरा पैमान-ए-इश्क़
ग़म-ए-मौजूद ग़लत और ग़म-ए-फ़र्दा बातिल
बे-निशाँ साहिर निशाँ में आ के शायद बन गया
अज़ल से हम-नफ़सी है जो जान-ए-जाँ से हमें
अयाँ 'अलीम' से है जिस्म-ओ-जान का इल्हाक़
ऐ परी-रू तिरे दीवाने का ईमाँ क्या है
अहद-ए-मीसाक़ का लाज़िम है अदब ऐ वाइ'ज़