अहद-ए-मीसाक़ का लाज़िम है अदब ऐ वाइ'ज़
है ये पैमान-ए-वफ़ा रिश्ता-ए-ज़ुन्नार न तोड़
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रुस्वा-ए-इश्क़ है तिरा शैदा कहें जिसे
हर सर में ये सौदा है कि मैं ही मैं हूँ
क़ुल्ज़ुम-ए-फ़िक्र में है कश्ती-ए-ईमाँ सालिम
था अनल-हक़ लब-ए-मंसूर पे क्या आप से आप
नूर-ए-ईमाँ सुर्मा-ए-चश्म-ए-दिल-ओ-जाँ कीजिए
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
अयाँ 'अलीम' से है जिस्म-ओ-जान का इल्हाक़
मैं दीवाना हूँ और दैर-ओ-हरम से मुझ को वहशत है
ऐ परी-रू तिरे दीवाने का ईमाँ क्या है
बे-निशाँ साहिर निशाँ में आ के शायद बन गया
रुस्वा-ए-इश्क़ में तिरा शैदा कहें जिसे
काम इस दुनिया में आ कर हम ने क्या अच्छा किया