अज़ल से हम-नफ़सी है जो जान-ए-जाँ से हमें
पयाम दम-ब-दम आता है ला-मकाँ से हमें
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लाज़िम मलज़ूम हो गए ज़ात-ओ-सिफ़ात
अयाँ 'अलीम' से है जिस्म-ओ-जान का इल्हाक़
मिल-मिला के दोनों ने दिल को कर दिया बरबाद
ऐ परी-रू तिरे दीवाने का ईमाँ क्या है
चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी से दिल हुआ ख़राब-आबाद
हर सर में ये सौदा है कि मैं ही मैं हूँ
वजूद अब मिरा ला-फ़ना हो गया
फ़ज़ा-ए-आलम-ए-क़ुदसी में है नश्व-ओ-नुमा मेरी
मैं नफ़्स-परस्ती से सदा ख़्वार रहा
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
तिरे सिवा मिरी हस्ती कोई जहाँ में नहीं
तक़वे के लिए जन्नत-ओ-कौसर हुए मख़्सूस