ग़म-ए-मौजूद ग़लत और ग़म-ए-फ़र्दा बातिल
राहत इक ख़्वाब है जिस की कोई ताबीर नहीं
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बुत-परस्ती के सनम-ख़ाने का आसार न तोड़
मरदूद-ए-ख़लाइक़ हूँ गुनहगार हूँ मैं
वजूद अब मिरा ला-फ़ना हो गया
तक़वे के लिए जन्नत-ओ-कौसर हुए मख़्सूस
निशाँ इल्म-ओ-अदब का अब भी है उजड़े दयारों में
क़दम है ऐन हुदूस और हुदूस ऐन क़दम
आते हुए इस तन में न जाते हुए तन से
गोया ज़बान हाल थी 'साहिर' ख़मोश था
था अनल-हक़ लब-ए-मंसूर पे क्या आप से आप
ऐ तीनत अबस अब बदी से बाज़ आ
हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ
मिल-मिला के दोनों ने दिल को कर दिया बरबाद