है सनम-ख़ाना मिरा पैमान-ए-इश्क़
ज़ौक़-ए-मय-ख़ाना मुझे सामान-ए-इश्क़
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हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ
अयाँ हो रंग में और मिस्ल-ए-बू गुल में निहाँ भी हो
जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है
दैर-ओ-हरम हैं मंज़र-ए-आईन-ए-इख़तिलाफ़
चार उंसुर से बना है जिस्म-ए-पाक
कैफ़-ए-मस्ती में अजब जलवा-ए-यकताई था
आलम का वजूद है नुमूद-ए-बे-बूद
अहद-ए-मीसाक़ का लाज़िम है अदब ऐ वाइ'ज़
मैं दीवाना हूँ और दैर-ओ-हरम से मुझ को वहशत है
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
गोया ज़बान हाल थी 'साहिर' ख़मोश था
था अनल-हक़ लब-ए-मंसूर पे क्या आप से आप