हम गदा-ए-दर-ए-मय-ख़ाना हैं ऐ पीर-ए-मुग़ाँ
काम अपना तिरे सदक़े में चला लेते हैं
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
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चार उंसुर से बना है जिस्म-ए-पाक
बे-निशाँ साहिर निशाँ में आ के शायद बन गया
क़ुल्ज़ुम-ए-फ़िक्र में है कश्ती-ए-ईमाँ सालिम
अयाँ 'अलीम' से है जिस्म-ओ-जान का इल्हाक़
तिरे सिवा मिरी हस्ती कोई जहाँ में नहीं
जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है
वजूद अब मिरा ला-फ़ना हो गया
तक़वे के लिए जन्नत-ओ-कौसर हुए मख़्सूस
अज़ल से हम-नफ़सी है जो जान-ए-जाँ से हमें
दिल को यकसूई ने दी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की सलाह
रुस्वा-ए-इश्क़ में तिरा शैदा कहें जिसे
जुनूँ के जोश में जिस ने मोहब्बत को हुनर जाना