किताब-ए-दर्स-ए-मजनूँ मुसहफ़-रुख़्सार-ए-लैला है
हरीफ़-ए-नुक्ता-दान-ए-इश्क़ को मकतब से क्या मतलब
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था अनल-हक़ लब-ए-मंसूर पे क्या आप से आप
कैफ़-ए-मस्ती में अजब जलवा-ए-यकताई था
रुस्वा-ए-इश्क़ में तिरा शैदा कहें जिसे
ख़जलत से मरा जाता हूँ क्या ज़िंदा हूँ
दिल है बहर-ए-बे-कराँ दिल की उमंग
मस्त-ए-निगाह-ए-नाज़ का अरमाँ निकालिए
हैं सात ज़मीं के तबक़ और सात हैं अफ़्लाक
दरमियान-ए-जिस्म-ओ-जाँ है इक अजब सूरत की आड़
तक़वे के लिए जन्नत-ओ-कौसर हुए मख़्सूस
दैर-ओ-हरम हैं मंज़र-ए-आईन-ए-इख़तिलाफ़
यूँ तो हर दीन में है साहब-ए-ईमाँ होना
नक़्श-ए-क़दम हैं राह में फ़रहाद-ओ-क़ैस के