क़ुल्ज़ुम-ए-फ़िक्र में है कश्ती-ए-ईमाँ सालिम
ना-ख़ुदा हुस्न है और इश्क़ है लंगर अपना
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नूर-ए-ईमाँ सुर्मा-ए-चश्म-ए-दिल-ओ-जाँ कीजिए
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है
दिल है बहर-ए-बे-कराँ दिल की उमंग
ऐ तीनत अबस अब बदी से बाज़ आ
हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ
अयाँ हो रंग में और मिस्ल-ए-बू गुल में निहाँ भी हो
ग़म-ए-मौजूद ग़लत और ग़म-ए-फ़र्दा बातिल
दिल की तस्कीन को काफ़ी है परेशाँ होना
तिरे सिवा मिरी हस्ती कोई जहाँ में नहीं
दैर-ओ-हरम हैं मंज़र-ए-आईन-ए-इख़तिलाफ़
रुस्वा-ए-इश्क़ है तिरा शैदा कहें जिसे