था अनल-हक़ लब-ए-मंसूर पे क्या आप से आप
था जो पर्दे में छुपा बोल उठा आप से आप
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फ़ज़ा-ए-आलम-ए-क़ुदसी में है नश्व-ओ-नुमा मेरी
समद को सरापा सनम देखते हैं
ऐ तीनत अबस अब बदी से बाज़ आ
मस्त-ए-निगाह-ए-नाज़ का अरमाँ निकालिए
ख़जलत से मरा जाता हूँ क्या ज़िंदा हूँ
हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ
तक़वे के लिए जन्नत-ओ-कौसर हुए मख़्सूस
दिल है बहर-ए-बे-कराँ दिल की उमंग
चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी से दिल हुआ ख़राब-आबाद
मैं नफ़्स-परस्ती से सदा ख़्वार रहा
मिल-मिला के दोनों ने दिल को कर दिया बरबाद
हैं सात ज़मीं के तबक़ और सात हैं अफ़्लाक