वा होते हैं मस्ती में ख़राबात के असरार
रिंदी मिरा ईमान है मस्ती है मिरा फ़र्ज़
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है सनम-ख़ाना मिरा पैमान-ए-इश्क़
नक़्श-ए-क़दम हैं राह में फ़रहाद-ओ-क़ैस के
जला है किस क़दर दिल ज़ौक़-ए-काविश-हा-ए-मिज़्गाँ पर
ऐ परी-रू तिरे दीवाने का ईमाँ क्या है
मैं नफ़्स-परस्ती से सदा ख़्वार रहा
मस्त-ए-निगाह-ए-नाज़ का अरमाँ निकालिए
दिल है बहर-ए-बे-कराँ दिल की उमंग
या-रब मिरे दिल को कर अता सिद्क़-ओ-सफ़ा
रुस्वा-ए-इश्क़ है तिरा शैदा कहें जिसे
जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है
बे-निशाँ साहिर निशाँ में आ के शायद बन गया
जुनूँ के जोश में जिस ने मोहब्बत को हुनर जाना