आलम का वजूद है नुमूद-ए-बे-बूद
है आब-ए-सराब उस की हस्ती की नुमूद
नैरंग-ए-तिलिस्म उस को कहना है बजा
है वहम में मौजूद यक़ीं में मफ़क़ूद
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इस जिस्म की है पाँच अनासिर से बनावट
अयाँ 'अलीम' से है जिस्म-ओ-जान का इल्हाक़
दिल है बहर-ए-बे-कराँ दिल की उमंग
जला है किस क़दर दिल ज़ौक़-ए-काविश-हा-ए-मिज़्गाँ पर
हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ
हर सर में ये सौदा है कि मैं ही मैं हूँ
हैं सात ज़मीं के तबक़ और सात हैं अफ़्लाक
काम इस दुनिया में आ कर हम ने क्या अच्छा किया
अहद-ए-मीसाक़ का लाज़िम है अदब ऐ वाइ'ज़
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
बे-निशाँ साहिर निशाँ में आ के शायद बन गया