हर सर में ये सौदा है कि मैं ही मैं हूँ
हर दिल में समाया है कि मैं ही मैं हूँ
इस नफ़्स ने सब को कर दिया है गुमराह
इरफ़ाँ ये दिखाता है कि मैं ही मैं हूँ
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(659) Peoples Rate This
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
हैं सात ज़मीं के तबक़ और सात हैं अफ़्लाक
आते हुए इस तन में न जाते हुए तन से
शेर क्या है आह है या वाह है
सर-ए-अर्श-ए-बरीं है ज़ेर-ए-पा-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
समद को सरापा सनम देखते हैं
है सनम-ख़ाना मिरा पैमान-ए-इश्क़
पाबंदी-ए-अहकाम-ए-शरीअत है वहाँ फ़र्ज़
जुनूँ के जोश में जिस ने मोहब्बत को हुनर जाना
चार उंसुर से बना है जिस्म-ए-पाक
दिल को यकसूई ने दी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की सलाह
क्या शौक़ का आलम था कि हाथों से उड़ा ख़त