फ़ौज हक़ को कुचल नहीं सकती
फ़ौज चाहे किसी यज़ीद की हो
लाश उठती है फिर अलम बन कर
लाश चाहे किसी शहीद की हो
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नाकामी
मिरे अहद के हसीनो
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
मैं पल दो पल का शाइ'र हूँ
एक शाम
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
फ़न जो नादार तक नहीं पहुँचा
तुलू-ए-इश्तिराकियत
सुब्ह-ए-नौ-रूज़
वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा