चंद कलियाँ नशात की चुन कर
मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
Faiz Ahmad Faiz
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लहु नज़्र दे रही है हयात
शिकस्त-ए-ज़िंदाँ
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
लश्कर-कुशी
नूर-जहाँ के मज़ार पर
हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
गुलशन गुलशन फूल
किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
ख़ुद-कुशी से पहले
नया सफ़र है पुराने चराग़ गुल कर दो