अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
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रद्द-ए-अमल
फ़नकार
हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा
सब में शामिल हो मगर सब से जुदा लगती हो
हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें
चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
एक मुलाक़ात
ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
मिरे अहद के हसीनो
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है