औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
हिरास
दीवारों का जंगल जिस का आबादी है नाम
तरह-ए-नौ
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
मायूस तो हूँ वा'दे से तिरे
हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
शहकार
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
गुरेज़
अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है