कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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Parveen Shakir
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Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
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मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं
अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
बे पिए ही शराब से नफ़रत
बंगाल
ब-शर्त-ए-उस्तुवारी
तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए
बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले
भूल सकता है भला कौन ये प्यारी आँखें
बहुत घुटन है
इस रेंगती हयात का कब तक उठाएँ बार