लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
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ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
शिकस्त-ए-ज़िंदाँ
कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
उमीद
वज्ह-ए-बे-रंगी-ए-गुलज़ार कहूँ तो क्या हो
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है