मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
Anwar Masood
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Mir Taqi Mir
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शिकस्त
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में
मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
देखा तो था यूँही किसी ग़फ़लत-शिआर ने
ख़ूबसूरत मोड़
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के
जो बात तुझ में है तिरी तस्वीर में नहीं
नया सफ़र है पुराने चराग़ गुल कर दो
तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
नफ़स के लोच में रम ही नहीं कुछ और भी है