वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें
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शहकार
नया सफ़र है पुराने चराग़ गुल कर दो
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
ऐ नई नस्ल
एक वाक़िआ
फ़रार
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
इतनी हसीन इतनी जवाँ रात क्या करें
हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार
आज की रात मुरादों की बरात आई है