अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
दोस्तो आओ कि कुछ ख़्वाब दिखाते हैं तुम्हें
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(509) Peoples Rate This
आज फिर अपनी समाअत सौंप दी उस ने हमें
हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी
ख़रीदने के लिए उस को बिक गया ख़ुद ही
यक़ीं की धूप में साया भी कुछ गुमान का है
इक धुँदलका हूँ ज़रा देर में छट जाऊँगा
कज-कुलाही पे न मग़रूर हुआ कर इतना
कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया
मंज़र-ए-ख़ेमा-ए-शब देखने वाला होगा
उम्र भर जिस के लिए पेट से बाँधे पत्थर
ख़ौफ़ आँखों में मिरी देख के चिंगारी का