हम आदमी की तरह जी रहे हैं सदियों से
चलो 'सलीम' अब इंसान हो के देखते हैं
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(478) Peoples Rate This
आज फिर अपनी समाअत सौंप दी उस ने हमें
मंज़र-ए-ख़ेमा-ए-शब देखने वाला होगा
ख़्वाहिश-ए-तख़्त न अब दिरहम-ओ-दीनार की गूँज
यक़ीं की धूप में साया भी कुछ गुमान का है
अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी
ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म सुख़न और भी होता है वसीअ
बदन क़ुबूल है उर्यानियत का मारा हुआ
कौन सा जुर्म ख़ुदा जाने हुआ है साबित
इक एक हर्फ़ की रखनी है आबरू मुझ को
आज रक्खे हैं क़दम उस ने मिरी चौखट पर