ख़रीदने के लिए उस को बिक गया ख़ुद ही
मैं वो हूँ जिस को मुनाफ़े में भी ख़सारा हुआ
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यक़ीं की धूप में साया भी कुछ गुमान का है
इक धुँदलका हूँ ज़रा देर में छट जाऊँगा
हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी
बदन क़ुबूल है उर्यानियत का मारा हुआ
कौन सा जुर्म ख़ुदा जाने हुआ है साबित
कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया
बेड़ियाँ डाल के परछाईं की पैरों में मिरे
हम आदमी की तरह जी रहे हैं सदियों से
ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म सुख़न और भी होता है वसीअ
उम्र भर जिस के लिए पेट से बाँधे पत्थर