मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
अब न मय-ख़ाना न पैमाना न शीशा न सुबू
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
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Gulzar
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कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
सितारे की तरह सीने में दिल डूबा किया लेकिन
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
माल-ओ-ज़र अहल-ए-दुवल सामने यूँ गिनते हैं
दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है
अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल
ये भी इक रात कट ही जाएगी