ग़ुबार-ए-फ़िक्र को तहरीर करता रहता हूँ

ग़ुबार-ए-फ़िक्र को तहरीर करता रहता हूँ

मैं अपना दर्द हमा-गीर करता रहता हूँ

रिदा-ए-लफ़्ज़ चढ़ाता हूँ तुर्बत-ए-दिल पर

ग़ज़ल को ख़ाक-ए-दर-ए-'मीर' करता रहता हूँ

नबर्द-आज़मा हो कर हयात से अपनी

हमेशा फ़त्ह की तदबीर करता रहता हूँ

न जाने कौन सा ख़ाका कमाल-ए-फ़न ठहरे

हर इक ख़याल को तस्वीर करता रहता हूँ

बदलता रहता हूँ गिरते हुए दर-ओ-दीवार

मकान-ए-ख़स्ता में ता'मीर करता रहता हूँ

लहू रगों का मसाफ़त निचोड़ लेती है

मैं फिर भी ख़ुद को सफ़र-गीर करता रहता हूँ

उदास रहती हैं मुझ में सदाक़तें मेरी

मैं लब-कुशाई में ताख़ीर करता रहता हूँ

सदाएँ देती हैं 'सालिम' बुलंदियाँ लेकिन

ज़मीं को पाँव की ज़ंजीर करता रहता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Salim Shuja Ansari. is written by Salim Shuja Ansari. Complete Poem in Hindi by Salim Shuja Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.