कुछ तो मैं भी डरा डरा सा था
और कुछ रास्ता नया सा था
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(827) Peoples Rate This
बे-वज्ह ज़ुल्म सहने की आदत नहीं रही
जीना अज़ाब क्यूँ है ये क्या हो गया मुझे
ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें
ख़्वाबों के आसरे पे बहुत दिन जिए हो तुम
आए हैं घर मिरा सजाने दर्द
दोस्ती कुछ नहीं उल्फ़त का सिला कुछ भी नहीं
दर्द जब शाएरी में ढलते हैं
क्या नहीं जानता मुझे कोई
किसी क़िस्मत में एक घर निकला
कहो तो आज बता दें तुम्हें हक़ीक़त भी
मुझे ख़बर न थी इस घर में कितने कमरे हैं
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता